class_10th note Biology जीव विज्ञान
chapter-1 जैविक प्रक्रम पोषण (Nutrition)
जैव प्रक्रम (life processes):- वे सारी क्रियाएं जिसके द्वारा जीवो का अनुरक्षण (maintenance) होता है जैविक प्रक्रम कहलाता है|
N- जैविक प्रक्रियाओं के संचालन, वृद्धि, टूट-फूट को रोकने अधिकारियों के लिए जीवो को ऊर्जा की आवश्यकता होती है| ऊर्जा प्राप्त करने के लिए जीव खाद पदार्थ की आवश्यकता होती है| जीव पोषण की क्रिया से प्राप्त करता है
#जैविक प्रक्रम में विभिन्न क्रियाएं होती है
- पोषण (nutrition)
- श्वसन (respiration)
- परिवहन (transport)
- उत्सर्जन (excretion)
- जनन (repoduction)
नियंत्रण एवं समन्वय ( Control and Coordination)
पोषण (nutrition):– जिस क्रिया द्वारा जीव भोजन में उपस्थित पोषक तत्व को प्राप्त कर उसका उपयोग करता है जिससे शरीर में ऊर्जा की प्राप्ति होती है वो क्रिया पोषण कहलती है|
पोषण दो प्रकार के होते हैं
1.स्वपोषण (Autotrophic nutrition)
2. परपोषण (Heterotrophic nutrition)
1.स्वपोषण (Autotrophic nutrition):-ऐसे जीव जो पूजन के लिए अन्य जीवो पर निर्भर न रहकर अपना भोजन स्वयं संश्लेषित करते हैं स्वपोषी कहलाते हैं|
जैसे – हरे पेड़ पौधे
note-स्वपोषण में सूर्य की प्रकाश कार्बनडाइऑक्साइड (Co2)क्लोरोप्लास्ट एवं जल(H2O) का होना आवश्यक है|
2.परपोषण (Heterotrophic nutrition):- पोषण का ऐसा प्रकार जिसमें जीव दूसरे जीवो पर आश्रित रहकर तथा उससे अपना भोजन प्राप्त करता है इस प्रकार के पोषण को परपोषण करते हैं|
परपोषण तीन प्रकार के होते हैं|
- i)मृतजीवी पोषण
- ii)परजीवी पोषण
- iii)प्राणीसम पोषण
i)मृतजीवी पोषण(saprophytic nutrition):- इस पोषण में जीव मृत जंतुओं और पौधों के शरीर से अपना भोजन अपने शरीर की श्रद्धा से घुलनशील कार्बनिक पदार्थ के रूप में अवशोषित करते हैं ऐसे पोषण को मृतजीवी पोषण करते हैं|
जैसे कि- कवक ,बैक्टीरिया, प्रोटोजोआ
ii)परजीवी पोषण (parasitic nutrition):– पोषण कैसा प्रकार जिसमे जीव अपना भोजन दूसरे प्राणी के संपर्क में स्थाई या अस्थाई रूप से रह कर उससे अपना भोजन प्राप्त करता है परजीवी पोषण कहलाता है|
जैसे कि -गोलकृमि, हुकवर्म, एंटीअमीबा हिटस्टोलीटिका आदि
iii)प्राणीसम पोषण(Holozoic nutrition):- वैसा पोषण जिसमें प्राणी अपना भोजन ठोस या तरल के रूप में जंतुओं से भोजन ग्रहण करें की विधि द्वारा गण करता है ,प्राणीसम पोषण कहलाता है|
जैसे कि- अमीबा, मेंढक, मनुष्य
- पौधों में पोषण(nutrition in plants)
क्लोरोफिल की उपस्थिति में पौधे कार्बन डाइऑक्साइड और पानी जैसे इनऑर्गेनिक पदार्थों से सूर्य की रोशनी में भोजन का निर्माण करते हैं। क्लोरोफिल को चलाने के लिए ऊर्जा प्रदान करती है जो इस ऊर्जा को अवशोषित करने में मदद करती है।
- ➡पौधों में आवश्यक पोषक तत्व
- पौधों के सामान्य विकास एवं वृद्धि हेतु कुल 16 पोषक तत्वोंकी आवश्यकता होती है। …
- कार्बन, हाइड्रोजन व आक्सीजन को पौधे हवा एवं जल से प्राप्त करते हैं।
- नाइट्रोजन, फस्फोरस एवं पोटैशियम को पौधे मिट्टी से प्राप्त करते है। …
- कैल्शियम, मैग्नीशियम एवं गन्धक को पौधे कम मात्रा में ग्रहण करते है।
ग्लूकोज़:-ग्लूकोज़ (Glucose) या द्राक्ष शर्करा (द्राक्षधु) सबसे सरल कार्बोहाइड्रेट है। यह जल में घुलनशील होता है तथा इसका रासायनिक सूत्र C6H12O6 है। यह स्वाद में मीठा होता है तथा सजीवों की कोशिकाओं के लिए ऊर्जा का सर्व प्रमुख स्रोत है।
प्रकाश संश्लेषण:- वह क्रिया है जिसमें पौधे अपने हरे रंग वाले अंगो जैसे पत्ती, द्वारा सूर्य के प्रकाशकी उपस्थिति में वायु से कार्बनडाइऑक्साइड तथा भूमि से जल लेकर जटिल कार्बनिक खाद्य पदार्थों जैसे कार्बोहाइड्रेट्स का निर्माण करते हैं तथा आक्सीजन गैस (O 2) बाहर निकालते हैं।” इन सारी प्रक्रिया को प्रकाश संश्लेषण करते हैं|
पति की आंतरिक संरचन-: पत्ती चपटी संरचना होती है। विभिन्न पादपों में प्रकाश , तापमान , जल की उपलब्धता आदि के आधार पर की पत्ती आंतरिक संरचना में विविधता पायी जाती है। … इन कोशिकाओं के कारण पत्तियाँ एक गोलाकार रूप में अथवा नालिका के समान हो जाती है।
- प्रकाश संश्लेषण की प्रक्रिया के लिए चार पदार्थ की आवश्यकता होती है|
1.क्लोरोफिल , 2.सूर्य के प्रकाश,3.कार्बनडाइऑक्साइड , 4.जल (H2O)
1.क्लोरोफिल हरे रंग का होता है और जब सूर्य का प्रकाश पेड़ की पत्तियों पर पड़ता है। तो यह क्लोरोफिल के निर्माण यानी पोषण को बढ़ा देता है जिसके परिणामस्वरूप पेड़ की पत्तियों का रंग हरा हो जाता है। क्लोरोफिल की मदद से पत्तियां हवा, पानी और प्रकाश की मौजूदगी में भोजन का निर्माण करती हैं।
2.सूर्य के प्रकाशीय ऊर्जा को अवशोषित करके क्लोरोफिल का अणु उत्तेजित हो जाते हैं। ये सक्रिय अणु जल के अणुओं को H+ तथा OH- आयन में विघटित कर देते हैं। इस प्रकार क्लोरोफिल के अणु प्रकाश-संश्लेषण की जैव-रसायनिक क्रिया को प्रारम्भ करते हैं। प्रकाश सूर्य का प्रकाश प्रकाश-संश्लेषण के लिए आवश्यक है।
3.प्रकाश-संश्लेषण में कार्बनडाइऑक्साइड और जल के बीच रासायनिक क्रिया के फलस्वरूप ग्लूकोज का निर्माण होता है तथा ऑक्सीजन मुक्त होती है। श्वसन में इसके विपरीत ग्लूकोज के ऑक्सीकरण के फलस्वरूप जल तथा कार्बनडाइऑक्साइड बनती हैं। प्रकाश-संश्लेषण एक रचनात्मक क्रिया है इसके फलस्वरूप सजीव के शुष्क भार में वृद्धि होती है।
4.जल: जल प्रकाश-संश्लेषण की क्रिया के लिए अत्यन्त आवश्यक है चूँकि यह स्वयं एक कच्चा पदार्थ है। पानी फोटोकेमिकल प्रक्रियाओं के समय अनेक रासायनिक परिवर्तन ला देता है। पानी कोशाओं की आशीनता के लिए आवश्यक है तथा इसके द्वारा स्टोमेटा का खुलना व बन्द होना निर्भर करता है जो कि वात विनिमय के लिए आवश्यक है।
जंतुओं में पोषण(nutrition in animals)
जंतुओं में भोजन के लिए पूर्ण रूप से अन्य जीवो पर निर्भर होते हैं अच्छा जंतु परपोषी होते हैं जो इसके लक्षण है परपोषी जंतु मृतजीवी, परजीवी, प्राणीसमपोषहोते हैं
अमीबा:– एक सरल प्राणी संपोषित जीव है यह मृदु जल लिए एक कोशिकीय तथा और निश्चित आकार का प्राणी है इसका आकार टूटता दो के बनने और बिगड़ने के कारण बदलता रहता है इसके शरीर में पोषण के लिए कोई विशेष रचना नहीं होती यह अपने उत्पादों की मदद से ही भोजन ग्रहण करता है|
अमीबा का भोजन सेवाल के छोटे-छोटे टुकड़े बैक्टीरिया टाइमर अन्य छोटे एक कोशिकीय जीव तथा मृत कार्बनिक पदार्थ के छोटे-छोटे टुकड़े इत्यादि हैं
पैरामीशियम:- एक कोशिकीय जीव है इसका आकार निश्चित होता है तथा इसका शरीर प्रचलन अंगक सिलिया से ढका होता है| जो गंदे पानी, नदी, झीलों, पोखर, खाईयो, तथा गड्डो में भरे पानी इत्यादि में पाया जाता है। यह प्रोटोजोआ संघ का जीव है। इसकी एक सामान्य जाति कोडेटाम पूरे संसार में पाई जाती है। यह देखने में किसी मानव तलवो की तरह होता है।
मनुष्य का पाचन तंत्र
आहारनाल -मानव के पाचन तंत्र में एक आहार नाल और सहयोगी ग्रंथियाँ होती हैं। आहर नाल मुख, मुखगुहा, ग्रसनी, ग्रसिका, आमाशय, क्षुद्रांत्र, वृहदांत्र, मलाशय और मलद्वार से बनी होती है। सहायक पाचन ग्रंथियों
– आहर नाल मुख, मुखगुहा, ग्रसनी, ग्रसिका, आमाशय, क्षुद्रांत्र, वृहदांत्र, मलाशय और मलद्वार से बनी होती है। सहायक पाचन ग्रंथियों में लार ग्रंथि, यकृत|
मनुष्य का आहार नाल:-
मुख से लेकर गुदा तक 8 से 10 मीटर लम्बी खोखली और अत्यधिक कुण्डलित हमारी आहार नाल होती है जिसे जठरान्त्रीय कार्य मार्ग (Gastrointestinal tract GI Tract) कहते हैं। इसके निम्न भाग हैं -(1) मुख ग्रासन गुहिका (2) ग्रासनली, (3) आमाशय तथा (4) आँत। मुख मुखगुहा में खुलता है।
(1) मुखगुहा (Buccal cavity): मुखगुहा आहारनाल का पहला भाग है। मनुष्य का मुख एक दरार के समान होता है जो दोनों जबड़ों के बीच में स्थित एक गुहा में खुलता है, जिसे मुखगुहा कहते हैं। मुखगुहा के ऊपरी भाग को तालू कहा जाता है। मनुष्य का मुखगुहा ऊपरी तंथा निचले जबड़े से घिरी होती है।
(2)ग्रासनली:-मानव का ग्रासनाल या ग्रासनली (ओसोफैगस) लगभग 25 सेंटीमीटर लंबी एक संकरी पेशीय नली होती है जो मुख के पीछे गलकोष से आरंभ होती है, सीने से थोरेसिक डायफ़्राम से गुज़रती है और उदर स्थित हृदय द्वार पर जाकर समाप्त होती है। ग्रासनली, ग्रसनी से जुड़ी तथा नीचे आमाशय में खुलने वाली नली होती है।
(3)आमाशय- एक छोरी थारी जैसी संरचना है जो उदर गुहा के बाई और से शुरू होकर अनुप्रस्थ दिशा में फैली होती है|आमाशय एक से तीन लीटर तक भोजन धारित कर सकता है। (i) कार्डियक भाग-आमाशय का अग्र भाग कार्डियक भाग कहलाता है। ग्रसिका व आमाशय के बीच एक कपाट पाया जाता है, जिसे कार्डियक कपाट कहते हैं। इस कपाट के कारण भोजन ग्रासनली से आमाशय में तो आ सकता है, परन्तु आमाशय से ग्रासनली/ग्रसिका में नहीं जा सकता है।
छोटी आंत
छोटी आत आहार नाल का सबसे लंबा भाग है यह विलन का रचना होती है आहार नाल के इस भाग में पाचन की क्रिया पूर्ण होती है मनुष्य मैं इसकी लंबाई लगभग 6 मीटर तथा चौड़ाई 2.5 सेंटीमीटर होती है|भोजन पचाने की प्रक्रिया डेढ़ से तीन घंटे चलती है। आंतों में ग्रंथियां भोजन के पोषक तत्वों को अवशोषित करती हैं। छोटी आंत विटामिन, बी-12, मिनरल्स कैल्शियम, मैग्नीशियम व प्रोटीन अवशोषित करती हैं। भोजन से 90 प्रतिशत पोषक तत्व ले लेती है।
➡छोटी आंत को तीन भागों में विभक्त किया जाता है:
- ग्रहणी
- मध्यान्त्र
- शेषान्त्र
यकृत -यह शरीर की सबसे बड़ी ग्रंथि है जिसका वजन 1.5 kg है जो उधर के ऊपरी दाहिने भाग में अवस्थित है यकृत कोशिकाओं से पित्त का लाभ होता है शराबी प्रीत का संचयन पित्त से नामक एक छोटी थैली जैसी रचना में होती है यकृत से कई छोटी-छोटी यकृत मलिकाएं निकली है|
अग्नाशय-आमाशय, ग्रास नली और छोटी आंत के बीच में स्थित होता है। यह छोटी आंतों में आंशिक रूप से पचे भोजन (अम्लान्न) को भेजने से पहले, अबाध पेशी ऐंठन के माध्यम से भोजन के पाचन में सहायता के लिए प्रोटीन-पाचक प्रकिण्व(एन्ज़ाइम) और तेज़ अम्लों को स्रावित करता है (जो ग्रासनलीय पुरःसरण के ज़रिए भेजा जाता है).
बड़ी आंत-गहरे लाल रंग की बड़ी आंत छोटी और अपेक्षाकृत मोटी होती है, जिसकी लंबाई औसत रूप से लगभग 1.5 मीटर (5 फुट) होती है। आकार और उम्र के अनुसार व्यक्तियों में अलग अलग आकार की आंतें होंगी. ल्यूमेन (अवकाशिका) वह गुहा है जहां से पचा हुआ भोजन गुजरता है तथा जहां से पोषक तत्व अवशोषित होते हैं।
पाचन तंत्र के प्रमुख अंग
- मुख (Mouth)
- ग्रसनी (Pharynx)
- ग्रासनली (Oesophagus)
- आमाशय (Stomuch)
- छोटी ऑत (Small Intestine)
- बड़ी ऑत (Large Intesine)
- मलाशय (Rectum)
- गुदा (Anus)
Thanks for all reader& student.🙏